कथा और कर्म का मेल

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एक सुंदर गाँव में गोपाल नामक एक कथावाचक रहते थे। वे बड़े ही ज्ञानी थे और उनकी कथाएँ सुनने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे। लेकिन गोपाल सिर्फ अच्छी कथाएँ सुनाते थे, उनकी करनी में वो बात नहीं होती थी। एक दिन, गाँव में एक बड़ा मेला लगा और गोपाल को वहाँ कथा सुनाने के लिए बुलाया गया। सभी लोग बड़े उत्साहित थे। कथा शुरू होने से पहले एक छोटे बच्चे ने गोपाल के पास आकर कहा, ‘बाबाजी, मेरी गेंद पेड़ पर अटक गयी है, क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?’ गोपाल ने कहा, ‘बेटा, मैं अभी बहुत व्यस्त हूँ। बाद में मदद करूँगा।’ और वह कथा सुनाने चले गए। कथा में उन्होंने कहा कि हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए। कथा समाप्त होने के बाद, वही छोटा बच्चा फिर से आया और बोला, ‘बाबाजी, मेरी गेंद…’ गोपाल ने उसे फिर टाल दिया। तब एक बुजुर्ग ने गोपाल से कहा, ‘बेटा, तुम्हारी कथा तो अच्छी है, पर क्या तुम उस पर अमल भी करते हो?’ गोपाल को अपनी गलती समझ में आ गयी और उन्होंने तुरंत उस बच्चे की मदद की। उस दिन से, गोपाल ने कथाएँ सुनाने के साथ-साथ उन पर अमल भी करना शुरू कर दिया।

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